पं. श्री कन्हैयालाल सिखवाल
भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म एवं गो सेवा में अग्रणी विप्र 'समाज-रत्न' स्व. पं. कन्हैयालाल सिखवाल का जन्म सन् 1930 में राजस्थान के सुप्रसिद्ध शहर श्री डूँगरगढ़ (जि.-बीकानेर) में पं. मुखाराम जी एवं श्रीमती झनकारी देवी के एक साधारण परिवार में हुआ ।
मध्यम परिवार में जन्म लेकर आपने जीवन के क्षेत्रों में उच्चतम शिखर तक पहुँचने में सफलता प्राप्त की। आपने राजस्थान से आकर कोलकाता में एक कर्मयोगी की तरह अपने कार्यक्षेत्र की स्थापना की । पूर्वी बंगाल के नारायणगंज (वर्तमान बंगलादेश) में आपने भीषण जीवन संघर्ष किया । पं. नथमल जी माडम्या (गोहाटी, निवासी) की सुपुत्री सावित्री देवी से आपका पाणीग्रहण संस्कार हुआ। आप बड़ी कृष्णभक्त समाजसेविका एवं दयालु गृहिणी थीं। 1990 में श्री डूंगरगढ़ में भरे पूरे परिवार के बीच अकस्मात् आपका स्वर्गवास हो गया ।
महानगर कोलकाता ही सिखवालजी की कर्म भूमि बनी, और निरन्तर आप अपने क्षेत्र में अग्रसर होते गये । जूट के व्यवसाय के साथ-साथ प्रोपर्टी एक्सचेंज का कार्य भी आपने अपनाकार सफलता प्राप्त की । सन् 1966 में आपने 19, जाकरिया स्ट्रीट, कोलकाता 73 का एक वैभवशाली मकान खरीद लिया। जो वर्तमान में शुद्ध शाकाहारी होटल राजस्थान गेस्ट हाउस के नाम से सुप्रसिद्ध है । व्यवसाय के साथ-साथ आप समाज-सेवा में भी निरन्तर बढ़ते गये । अखिल भारतीय सिखवाल ब्राह्मण महासभा पुष्कर के आपने निर्विरोध 11 साल तक अध्यक्ष पद को सुशोभित किया । अपने अध्यक्षीय काल में, स्कूलें, छात्रावास, मन्दिर, अस्पताल एवं जन सेवार्थ कुओं के निर्माण के साथ साथ बौद्धिक विकास हेतु स्व. कुंवरलालजी शर्मा, कोटा द्वारा जयश्रृंग मासिक पत्रिका का प्रकाशन एवं प्रसारण करवाया तथा स्कूल के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति एवं पढ़ाई हेतु अनेक सुविधाएं उपलब्ध करायी, जिन छात्रों को आपके सेवाकाल में छात्रवृत्ति दी गयी आज वे देश में विद्वान, व्यवसायी, वकील, डाक्टर आदि उच्च पदों पर अपना गौरव स्थापित कर रहे हैं । इसी कालान्तर में कोलकाता ब्राह्मण समाज की संस्था 'राजस्थान ब्राह्मण संघ' के अध्यक्ष निर्वाचित होकर आपने समाज सेवा का कीर्तिमान स्थापित किया।
धार्मिक कार्यों में भी आपका पूर्ण योगदान रहा । सन् 1984 में अनन्तश्री विभूषित जगद् गुरू शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानन्द जी सरस्वती महाराज के सान्निध्य में आपने कोलकाता में गंगा के पावन तट पर विश्व्शान्ति महायज्ञ सम्पन्न कराया । 1992 में सिलीगुड़ी (पं. बंगाल) में ब्राह्मण समाज के ऋषि भवन का शिलान्यास किया जो कि समाज का एक कीर्तिमान भवन है । आपने समाज के विशिष्ठ विद्बानों को पं. मुखाराम सिखवाल शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया । समाज के अनेक प्रान्तों में बने भवनों में पुष्कर, कोलकाता सिलिगुड़ी आदि स्थानों की विभिन्न सेवाभावी संस्थाओं सिरड़ी, ऋषि श्रृंग संस्थान-भीलवाड़ा, ऋषीकुंज, उदयपुर, आदि को अपना तन-मन और धन से योगदान दिया । पादू (नागोर जिला) के बस स्टेण्ड पर विश्रामालय का निर्माण, हरसोर (नागौर) में स्व. श्री लक्ष्मीनारायण जोशी के प्रगाढ़ प्रेम की वजह से ऋषि आश्रम में सावित्री देवी-कन्हैयालाल सिखवाल हॉल का निर्माण, ऋषिकेश की राजस्थान जन कल्याण समिति में सावित्रि देवी-कन्हैयालाल सिखवाल द्वारा हॉल बाबत आर्थिक सहयोग, उदयपुर में जयश्रृंग मित्र-मंडल द्वारा श्रृंगसेवा संस्थान के गठन एवं संचालन में महत्वपूर्ण योगदान देने हेतु आपको प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया । गाँव ब्राह्मणों की सरैडी में स्कूल एवं सिखवाल मन्दिर में मूर्ति बनाकार समाज को सुपुर्द किया । खाटु श्यामजी में आप द्वारा धर्मशाला का भूमि पूजन कर ख्याति अर्जित की । कोलकाता में आप सम्पूर्ण राजस्थानियों की एकमात्र संस्था 'राजस्थान परिषद' के अध्यक्ष बने । राजस्थान के अकाल में 1976 एवं 1984 में आपने गोसेवा हेतु जगद् गुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपानन्द जी महाराज के साथ गाँव-गाँव जाकर गोरक्षार्थ जो सेवा की,इन्हीं सेवाओं से प्रभावित होकर राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगन्नाथ पहाड़िया ने सिखवाल समाज के सिखवाल रत्न एवं तत्कालीन महामहिम राज्यपाल श्री वसन्त दादा पाटिल ने "राजस्थानश्री" तथा राजस्थान गो-सेवा संघ ने गोभक्त एवं तत्पश्चात् राजस्थान गोसेवा आयोग, जयपुर द्वारा गो वंश की रक्षण-संवर्द्धन हेतु उल्लेखनीय अर्थ सहयोगके लिए अध्यक्ष श्री भंवरलाल कोठारी ने प्रशस्ति पत्र तथा कामधेनु संरक्षक की उपाधि से आपको सम्मानित किया । देहावसान के तीन वर्षों पूर्व से ही आप श्री डूँगरगढ़ (राजस्थान) अपनी मातृभूमि में रहने लगे थे ।
15 अगस्त 1997 के स्वाधीनता दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर आपने श्री डूँगरगढ़ में हनुमान धोरे पर एक सांस्कृतिक समारोह में नारी शिक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए घोषणा की कि यहाँ एक कन्या पाठशाला का निर्माण होना चाहिये । आपकी इस राष्ट्रीय शिक्षा सेवा की योजना को आपके आत्मजों द्वारा मूर्त रूप दिया जा चुका है । तथा विद्यालय भवन निर्मित होकर इस में पाठशाला का व्यवस्थित कार्य चल रहा है एवं दिलीप उद्यान भी बन चुका है । टी.बी. सदन (कल्याण आरोग्य सदन) सीकर सांवली अस्पाताल में आपकी ओर से एक सीट इलाज हेतु स्थाई तौर पर प्रदान की हुई है । राजकीय चिकित्सालय श्रीडूँगरगढ़ में कमरों एवं चिकित्सालय के चारों ओर जाली लगाकार सुसज्जित तथा सुरक्षा प्रदान कर योगदान, श्रीगोपाल गोशाला में कई बार अध्यक्ष पद पर रह कर गो सेवा का शिविरों में तहसील की 10 हजार गायों को गोद लेकर उनकी सेवा का रिकार्ड बनाया । बालिका उच्चमाध्यमिक विद्यालय श्रीडूँगरगढ़ में आर्थिक योगदान, महाविद्यालय में ट्रस्ट के माध्यम से योगदान एवं श्मशान भूमि में कुआं बनाकार समाज को समर्पित, श्री तोलियासर गाँव में भैरूं जी के मंदिर में चांदी के चौखट का निर्माण कराया तथा बिग्गा गाँव में स्कूल में कमरा बनाकर अपना सहयोग प्रदान किया । प्रधान तीर्थस्थल हरिद्वार में भी एक कमरा बनाकर धर्मशाला को सुपुर्द किया।
जीवनयात्रा के अन्तिम क्षणों तक आप गोसेवा के कार्यों में लगे रहे । देहावसान से 1 माह पूर्व राजस्थान गोसेवा आयोग के अध्यक्ष श्री भँवरलाल कोठारी कलकात्ता पधारे और आपसे गोरक्षार्थ सेवा हेतु अनुदान की प्रार्थना की । सिखवाल जी ने अपनी महानता का परिचय देते हुए कन्हैयालाल सिखवाल चैरीटेबल ट्रस्ट से गौसेवार्थ एक लाख ग्यारह हजार रूपये की राशि का अनुदान देकर कीर्तिमान स्थापित किया ।
यह है गोभक्ति का जीता-जागता उदाहरण जो आपके जीवन के अन्तिम क्षणों तक साथ रहा । कर्मयोगी, धर्मनिष्ठ एवं समाज रत्न पं. कन्हैयालाल सिखवाल का गोलोकवास दिनांक 29 जनवरी 1998 को कलकत्ता में हो गया ।